विस्तार : सीक्रेट ऑफ डार्कनेस (भाग : 05)
"ब्रह्मेश? कौन ब्रह्मेश?" विस्तार की आँखे हैरानी से बड़ी होती जा रही थी वह दीवार के पीछे छिपे उस शख्स को ढूंढ रहा था जिसकी ध्वनि इस किले में गूंज रही थी।
"स्वयं से इतने अनभिज्ञ न बनो ब्रह्मेश!" विस्तार के पीछे वाली दीवार से स्वर उभरा और फिर उस विशाल कमरे में गूंजने लगा।
विस्तार के अंदर डर भरने लगा, न चाहते हुए भी वह किले के मुख्य द्वार की ओर भागा। दौड़ते-दौड़ते वह थक गया मगर उसने देखा अब तक वह उसी किले में ही है। वह अपनी पूरी जान लगाकर दौड़ना चाहा पर पैर अब थक चुके थे, अपनी पूरी शक्ति लगाकर चीखना चाहा पर उसके गले मे जैसे बर्फ जम गई हो। उसके कंठ से गूँ-गूँ के अतिरिक्त कोई स्वर न निकल पाया।
"भागने की कोशिश व्यर्थ है ब्रह्मेश! तुम जितना विरोध करोगे तुम्हें उतना अधिक कष्ट होगा। यदि तुम चाहो तो ये हम सरलतापूर्वक कर सकते हैं।" विस्तार के सामने की दीवार से स्वर उभरा।
"बोलती हुई दीवार? यह पूरा किला ही बोल रहा है, आखिर कौन हो तुम?" विस्तार ने चीख-चीखकर यह बोलने की कोशिश की पर उसके कण्ठ से एक भी शब्द नही निकल सके।
"मैं कौन हूँ? तुम बताओ तुम कौन हो?" विस्तार के सामने की दीवार एक ओर सरककर द्वार बनाती है, विस्तार न चाहते हुए भी उस ओर बढ़ा चला जाता है पर उसके मुँह से बोल नही फूट रहे थे।
"मैं भी तुम हूँ, तुम भी मैं हो। अंतर सिर्फ इतना है तुम यह नही जानते हो कि तुम क्या हो क्यों हो जबकि मैं जानता हूँ मैं क्या हूँ और क्यों हूँ?" विस्तार ने जिस कक्ष में प्रवेश किया वह पहले वाले से थोड़ा छोटा था। इसके सामने गोल-घुमावदार सीढ़िया थी जो नीचे की ओर जा रही थी।
"मैं..! मैं.. क्या हूँ? इस अंधकार में विस्तार का डर बढ़ता जा रहा था वह बाहर की ओर भागना तो चाहता था पर न जाने क्यों उस ओर बढ़ता जा रहा था जिधर अंधकार के अतिरिक्त कुछ न था। उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो कोई उसे पीछे से पकड़कर जबरदस्ती यहां लेकर आ रहा हो, वह चीखने की कोशिश करता है पर चीख नही पाता।
"घबराओ मत! यहां तुम सुरक्षित हो। यही तुम्हारा वास्तविक गन्तव्य है ब्रह्मेश!" सीढ़ियों के चारों ओर यह स्वर गूँजने लगा।
अब सीढ़िया समाप्त हो चुकी थी, विस्तार नीचे बने एक कक्ष में खड़ा था, कक्ष जमीन के इतना नीचे होने के बाद भी विस्तार को सांस लेने में कोई कठिनाई नही हो रही थी। सम्पूर्ण कक्ष में रोशनी का नामोनिशान तक नही था। विस्तार की आंखे काफी देर अंधेरे में रहने के कारण देखने मे अभ्यस्त हो चुकी थी परन्तु यहां इतना सघन अंधेरा था कि सबकुछ साफ नही दिख पा रहा था। अचानक विस्तार के पैरों के नीचे एक मानव कपाल खोपड़ी आ गयी, वह उछलने की कोशिश किया पर उछल न सका। उसके दिल की धड़कनें पसलियों के पीछे पल-प्रतिपल तेज होती जा रही थीं, डर के मारे चेहरा सुर्ख लाल हो गया था। पूरे कमरे में सिर्फ उसकी सांसो और धड़कनों की धाड़-धाड़ की आवाजें आ रही थी।
"तुम्हारे मन में अनगिनत सवाल होंगे।" सामने घने अंधेरे से एक स्वर उभरा, विस्तार की आँखे चाहकर भी वहां कुछ नही देख पा रहीं थी। "तुम जन्म से ही इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए बने हो। मैंने वो भयानक बाढ़ लाई ताकि मैं तुमसे मिल सकूँ पर तुम्हें वहां से बचा लिया गया। एक के बाद एक मैंने कई चालें चली अनगिनत योजनाएं बनाई पर कोई था जो हम दोनों के मिलन को रोकना चाहता था। बस इसलिए इतने वर्ष लग गए, इतने वर्षों के पश्चात मिले हो हमें गले तो लगाओ पुत्र!" उस भयानक स्वर में अचानक से मधुरता और खुशी के भाव मिश्रित हो जाते हैं।
"पुत्र!" विस्तार हैरान था और हद से अधिक परेशान भी। उसका पूरा बदन पसीने से नहा गया था। इतना परेशान वह अपने जीवन में कभी नही हुआ था।
"अब तो गले लग जाओ पुत्र! तुमसे मिलन की इच्छा में मैंने क्या क्या नही किया! यहां तक कि सूर्य के उगने का दिशाभ्रम भी उत्पन्न किया। इस भयानक जंगल में हर एक से सुरक्षित कर यहाँ तक लाया अब अपने पालक को और प्रतीक्षा न कराओ पुत्र! गले लग जाओ।" उसके शब्द करुण भाव से भरे हुए थे।
"तुम क.. क्या हो?" विस्तार को अब भी अपनी आँखों और कानों पर यकीन न हो पा रहा था। उसका स्वयं पर विश्वास करना भी मुश्किल हो रहा था। उसका अंतर्मन दो भागों में विभक्त हो चुका था, एक जो इस वक़्त तेजी से भागते हुए यहां से बहुत दूर चला जाना चाहता था वहीं दूसरा इस रहस्यमयी शख्स से मिलने को बेचैन हो रहा था।
"अब विलम्ब न करो पुत्र! न जाने कितने वर्षों तक हमने तुम्हारी प्रतीक्षा की है।" सम्पूर्ण कक्ष उसके करुण भाव से भर चुका था, ऐसे लग रहा था जैसे इस कक्ष में सैकड़ो लोग रुदन कर रहे हैं।
विस्तार का मन हुआ वह यहां से भाग जाए। अचानक उसका डर कम सा होने लगा वह भागने की तीव्र इच्छा लिए उस ओर बढ़ने लगा जिधर अंधेरे में से आवाज आ रही थी। अनमने मन से वह आगे बढ़ता जा रहा था जैसे उसके शरीर पर उसका कोई नियंत्रण नही हो, बढ़ते बढ़ते वो इतने सघन अंधेरे में पहुँच गया जहाँ वह चाहकर भी अंधेरे के अतिरिक्त कुछ न देख पा रहा था। अचानक रोशनी का तेज झमाका हुआ, एक पल को यह कक्ष प्रकाश से भर गया, वह कक्ष जैसे चीख उठा, विस्तार ने कक्ष को प्रकाश में एक नजर देखा। पूरा का पूरा कमरा लाशों-कंकालों से पटा हुआ था, जो भी इस किले के आसपास आया होगा वह कभी यहां से लौटकर न जा सका। विस्तार के हलक से जोरदार चीख उभरी, पर बाहर यह बस हल्की सी आवाज बनकर रह गयी। विस्तार को लगा जैसे उसका कलेजा और अंतड़िया मुँह के रास्ते बाहर आने को हैं।
"यह सब हमारे भोज मात्र थे पुत्र! तुम हमारे लिए विशेष हो।" अंधेरे में गूंजे उस स्वर ने विस्तार से कहा। विस्तार अब बुरी तरह पस्त हो चुका था, उसकी आँखों ने इतना कुछ देख लिया था जिसकी वह कल्पना भी नही कर सकता था। उसका शरीर निढाल होकर हैं हड्डियों के ढाँचे पर गिरने वाला था कि अचानक किसी ने उसे हवा में ही रोक लिया।
"अब हमें स्वतंत्र होने से कोई नही रोक सकता हाहाहा…!" वह कक्ष भयंकर शैतानी अट्ठहास से भर गया, कुछ पल बाद वहां की दीवारें भी शैतानी अट्ठहास करने लगीं। "सबको आने दो!"
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किले के बाहर अमन और जय अंदर जाने की कोशिश कर रहे थे और सब पीछे से उनको धक्का दिए जा रहे थे पर कोई अदृश्य शक्ति उन्हें उस ओमेगा के भीतर जाने से रोक रही थी।
"यह विस्तार अकेले उस किले में कौन सी खिचड़ी पका रहा है? हम तो साला अंदर भी न जा पा रहे!" अमन गुस्से से बड़बड़ाते हुए बोला।
"मुझे किसी अनहोनी की आशंका हो रही है अमन! किसी बहुत बड़ी अनहोनी की।" जय पूरी ताकत लगाकर आगे बढ़ने की कोशिश करता हुआ बोला।
"ये तुम्हें क्या हो गया है जय! आज सुबह से कैसी बहकी बहकी बातें कर रहे हो!" शिवि, जय को डाँटते हुए कहती है, जय अपना मुँह फेर लेता है।
"विस्तार-विस्तार!" शिल्पी लगातार चिल्लाये जा रही थी।
"शांत हो जाओ भद्रजनों! हम सब अपनी पूरी शक्ति लगाकर इसको पार करेंगे।" केशव दौड़ते हुए उछलकर पार करने की कोशिश करता है पर वह नीचे गिर जाता है, जय ऐन वक्त पर सम्भाल लेता है अन्यथा गिरकर उसके जबड़े तो टूट ही जाते।
"हम क्या इस जलमार्ग से उस पार नही जा सकते?" कबसे बैठा हुआ अमित सुझाव देता है।
"तो जाओ खुद कर लो न यार! ज्यादा ज्ञानी न बनो हम सब करके देख चुके हैं कोई फायदा नही, कोई अदृश्य दीवार हमें उस किले में जाने से रोक रही है।" अमन बहुत क्रोधित हो चुका था फिर भी स्वयं को सयंमित रखने की कोशिश कर रहा था।
"तो फिर विस्तार कैसे चला गया?" शिल्पी प्रश्नवाचक दृष्टि लिए अमन की ओर देखती है।
"क्या पता? हो सकता है यहां वन बाई वन की एंट्री मिलती हो!" शिवि कहती है, जिसपर सब थोड़ा रिलेक्स होते हैं पर मन की घबराहट कम नही हो रही थी।
"ये सारी मेरी गलती है, हमे फॉरेस्ट गार्ड्स के साथ ही आना चाहिए था।" अमन थोड़ा सा रुवांसा होकर बोला।
"छोड़ न अमन, अब जो होगा देखा जाएगा।" शिवि उसे शांत कराने की कोशिश हुए कहती है। सब मिलकर जोर से धक्का देकर आगे बढ़ने का प्लान बनाते हैं।
अचानक वह 'अदृश्य बन्ध' हट जाता है जिस कारण सभी एक दूसरे पर गिर जाते हैं।
"ये आईडिया पहले क्यों नही आया?" शिवि उठकर अपने कपड़े झाड़ते हुए बोली।
"हाँ! कब से तो हम अचार डाल रहे थे।" केशव मुँह बनाते हुए बोलता है।
"जल्दी चलो देखो विस्तार कहाँ है।" शिल्पी चीखते हुए किले की ओर दौड़ने लगती है।
"इस लड़की को क्या हुआ है जब देखो तब बस विस्तार की ही पड़ी रहती है, अरे इसके लिए हम कुछ है भी या नही!" शिवि मुँह बनाकर उसके पीछे चलते हुए बोली।
"इसी को प्रेम कहते है देवी जी।" अमित ठिठोली कर कहता है।
"क्या तुम सब थोड़ी देर चुप भी रह सकते हो?" कब से चुप आँसू व्यंग्यात्मक कटाक्ष करती है।
सब किले के मुख्य द्वार तक पहुंच चुके थे, जैसे ही उन्होंने अंदर कदम रखा बाहर के श्याम रंग के विपरीत अंदर से चमक रहा था, हर तरफ खूबसूरत नक्कासी की गई थी। एक तरफ एक मोर नाच रहा था तो दूसरी ओर एक विचित्र सा पंछी बना हुआ था जिसके चोच में कुछ दबा हुआ था, पंख ऊपर की ओर फैले हुए थे। अन्य दीवार और छत की गुम्बद पर कुछ विचित्र से चित्र बने हुए थे दीवारों पर इतने खूबसूरत और इतने स्पष्ट चित्र बनाना कदाचित सम्भव न था। नीचे की फर्श पर जो कि लाल रंग के पत्थरों से निर्मित था एक बड़ा सा ओमेगा चिन्ह बना हुआ था जिसके बीच धुँधली सी परछाई बनी हुई थी जिसका चेहरा स्पष्ट नजर नही आ रहा था। यह सब देख कर वे सब अत्यधिक प्रसन्न हुए, शिल्पी अब भी यह सब छोड़कर 'विस्तार-विस्तार' चिल्लाकर उसे ढूंढ रही थी।। आँसू हर एक चित्र को आँखों में उतार लेना चाहती थी परन्तु जय इन सबसे इतर किसी अन्य विचार में खोया हुआ था।
"क्या हुआ जय!" जब शिवि को एहसास हुआ कि उसने जय के साथ अच्छा व्यवहार नही किया है तो उसे क्षमा मांगने का दिल हुआ। वह हृदय में अनेको भाव भरकर जय की ओर बढ़ी। हालांकि वह भी जय से प्रेम करती थी पर जय भी उससे प्रेम करता है इस बात से अनजान थी।
"रहने दो यार!" जय का स्वर कठोर हो चुका था।
"सॉरी बाबा! अब से मजाक नही उड़ाऊंगी न!" शिवि दोनों हाथों से अपना कान पकड़ते हुए कहती है।
"कोई जरूरत नही। तुम अपनी जगह सही हो?" झ सपाट स्वर में कहता है।
"तुम परेशान क्यों हो जय! मैं तुम्हें एक पल को भी परेशान नही देख सकती।" शिवि के आँखों मे आंसू आ गए।
"अरे कुछ नही!" जय उसके आंसू पोछते हुए नॉर्मल होने की कोशिश करता है।
"बोलो न!" शिवि हठ करने लगी।
"मुझे यह सब बहुत अजीब लग रहा है यार!" जय खुद को शिवि से दूर करते हुए बोला। शिवि को लगा कि वह भी उसे चाहता है और कहने वाला है पर जय के ऐसे झिड़कने से उसे ठेस पहुंची और वह उससे थोड़ी दूर चली गयी।
यह कक्ष काफी विशाल था, सभी आगे बढ़ते जा रहे थे। शिल्पी, विस्तार का नाम लेकर पुकारते हुए उसे ढूंढ रही थी। अब तक कुछ पता न चलने पर सब परेशान होने लगे थे, उन्हें भीतर से एहसास होने लगा था कि यहां कुछ बहुत गलत है जिसका परिणाम कुछ भी हो सकता है।
सभी विस्तार को पुकारते हुए ओमेगा के ऊपरी घुमावदार वक्र को पार कर जाते हैं, अगले ही क्षण वह कक्ष अंधेरे से भरने लगता है।
"यह क्या हुआ?" अचानक अंधेरे के छाने से शिल्पी बहुत घबरा जाती है।
सबके मन में कई तरह के विचार आ रहे थे, वे धीरे धीरे आगे बढ़ने लगे थे।
क्रमशः….
Kaushalya Rani
25-Nov-2021 10:07 PM
Amazing imaginary
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Barsha🖤👑
25-Nov-2021 06:11 PM
बहुत ही खूबसूरत कहानी। गजब की कल्पना बुनी आपने
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🤫
04-Jul-2021 06:15 PM
ब्रिलिएंट वर्क......
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